जय श्री नाथ जी महाराज की जय

शिव गोरख नाथ
जय श्री नाथ जी महाराज
परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु
परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर
परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री रतिनाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )

Monday, January 11, 2010

रामायण विषय

बिरला ही कोई ऐसा भारतीय होगा जिसे कि “राम” के विषय में जरा भी जानकारी नहीं होगी, कम से कम उसने राम का नाम तो अवश्य ही सुना होगा. यह तो हम जानते हैं कि “राम” महान थे परंतु उनकी महानता क्या और कितनी थी यह बहुत कम लोग ही जानते हैं. और जो लोग जानते भी हैं वे भी ‘कुछ’ ही जानते हैं क्योंकि इस विषय में पूरा-पूरा जानना असम्भव है. आइये, इस ‘ब्लॉग’ के माध्यम से हम भी रामकथा के विषय में कुछ जानने का प्रयास करें.

“राम”, “रामायाण” तथा “रामचरित मानस” के विषय में कुछ जानने के पूर्व ‘महर्षि वाल्मीकि’ और ‘संत तुलसीदास’ के विषय में जानना अति आवश्यक है क्योंकि उन्होंने “राम” के चरित्र को केन्द्रित करके “रामायाण” तथा “रामचरित मानस” जैसे महान और अमर ग्रंथों को रचा.

कैसी विडंबना है कि हमारे देश के आज का युवा वर्ग “रामायण” को ‘रामानंद सागर’ के नाम से जानता है जब कि उसे ‘महर्षि वाल्मीकि’ एवं ‘संत तुलसीदास’ के नाम से जानना चाहिये, वैसे ही “महाभारत” को ‘बी.आर. चोपड़ा’ के नाम से जानता है जब कि उसे ‘महर्षि वेद व्यास’ के नाम से जानना चाहिये.

मेरा मंतव्य यह नहीं है कि ‘रामानंद सागर’ और ‘बी.आर. चोपड़ा’ को नहीं जानना चाहिये, अवश्य ही उन्हेँ भी जानना आवश्यक है क्योंकि “रामायण” और “महाभारत” जैसे महान टी.व्ही. सीरियल बनाने का श्रेय प्राप्त होने के कारण उनका नाम भी हिंदू संस्कृति के इतिहास में अमर हो चुका है. परंतु मैं यह कहना चाहता हूँ कि ‘महर्षि वेद व्यास’, ‘ऋषि वाल्मीकि ‘ और ‘संत तुलसीदास’ के नाम को कदापि नहीं भुलाया जाना चाहिये. उनका नाम अमर था, अमर है और अमर रहेगा. हाँ यह अवश्य है कि, जैसे बादल के पीछे आने के कारण चंद्रमा कुछ समय के लिये छुप जाता है, उनका नाम भी कुछ समय के लिये विलुप्तप्राय सा हो गया है.

तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाया था। जहाँ पर भगवान शंकर पार्वती जी को भगवान श्रीराम की कथा सुना रहे थे वहाँ कागा (कौवा) का एक घोसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को ऊँघ आ गई पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। कागभुशुण्डि जी ने यह कथा गरुड़ जी को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व का सर्वप्रथम रामायण माना जाता है।

हृदय परिवर्तन हो जाने के कारण एक दस्यु से ऋषि बन जाने तथा ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम के इसी वृतान्त को पुनः श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान श्रीराम की कथा को वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है तथा वाल्मीकि रामायण को आदि रामायण के नाम से भी जाना जाता है।

देश में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद देव भाषा संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये। ऐसी स्थिति को अत्यंत विकट जानकर जनजागरण के लिये महाज्ञानी संत श्री तुलसीदास जी ने एक बार फिर से भगवान श्रीराम के पवित्र कथा को देसी भाषा में लिपिबद्ध किया। संत तुलसीदास जी अपने द्वारा लिखित भगवान श्रीराम के कल्याणकारी कथा से परिपूर्ण इस ग्रंथ का नाम रामचरितमानस रखा। सामान्य रूप से रामचरितमानस को तुलसी रामायण के नाम से जाना जाता है।

कालान्तर में भगवान श्रीराम की कथा को अनेक विद्वानों ने अपने अपने बुद्धि, ज्ञान तथा मतानुसार अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेकों रामायणों की रचनाएँ हुई हैं।

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