जय श्री नाथ जी महाराज की जय

शिव गोरख नाथ
जय श्री नाथ जी महाराज
परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु
परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर
परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री रतिनाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )

Monday, October 26, 2009

समुद्र मंथन के समान है व्यक्ति का जीवन

समुद्र मंथन के समान है व्यक्ति का जीवन
संसार एक समुद्र है इस संसार रूपी समुद्र में देवता और दैत्य प्रवृति के लोग मंथन कर रहे हैं यह तो समाज की बुद्धि पर निर्भर है कि वह इस समुद्र से निकली किस वस्तु को ग्रहण करता है।देवता और दैत्य द्वारा किए जा रहे इस समाज रूपी समुद्र मंथन में यह सब कुछ है जिसकी इस संसार को इस संसार में मीराको कृष्ण, प्रहलाद को नरसिंह, धनियों को लक्ष्मी, विषयी को काम की प्राप्ति संसार रूपी समुद्र मंथन में जब व्यक्ति का मन मंदराचलपर्वत की तरह डूबने लगे तब उसे भगवान का सहारा कछुएके रूप में मिल जाए तो वह अमृत की धारा की ओर बढता है परंतु यदि उसे यह भगवान का सहारा नहीं मिलता तो वह पतन की ओर अग्रसर होता है। हर व्यक्ति के जीवन में मंथन से सर्वप्रथम हलाहल विश्व के समान विषय भोग ही सामने आते है इन्हीं विषय भोग रूपी विष ने सबको मार रखा है। देवता और दैत्य अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। संसार का नाम मृत और परमात्मा का नाम अमृत है जब व्यक्ति अमृत के लिए प्रयत्न अर्थात साधना करता है तो पहले उसका सामना विषय भोग रूपी विष से ही होता है। बिना विष का सामना किए कोई अमृत नहीं पा सकता। मीरा,भगत प्रहलाद, स्वामी रामानुज, स्वामी दयानंद इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। दैत्यों की तरह समुद्र मंथन करने पर कभी अमृत की प्राप्ति नहीं होती। अमृत तो देवताओं को ही प्राप्त होता है क्योंकि उनकी दृष्टि एवं विचार उत्तम होते है।
प्रभु हमेशा भक्तों के हितों के बारे में सोचता है यदि कोई प्राणी भूल वश कोई अपराध करता है तो उसे गलती मानने मात्र से क्षमा कर देते है परन्तु दुर्योधन ने गलती करने के बाद खुद भगवान के समझाने पर भी अपना घमंड नहीं छोडा कि जिस प्राणी को सब छोड देते हैं भगवान उनका सहारा होता है परन्तु जिसे भगवान खुद छोड दे उसका कोई सहारा नहीं हो सकता उसका पतन निश्चित है।

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