जय श्री नाथ जी महाराज की जय

शिव गोरख नाथ
जय श्री नाथ जी महाराज
परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु
परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर
परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री रतिनाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )

Monday, October 26, 2009

भक्ति से ही प्रभु को पाना संभव

भक्ति से ही प्रभु को पाना संभव
केवल भक्ति से ही परमेश्वर को समझा जा सकता है। जो व्यक्ति भक्ति भावना से पूर्ण होता है वही भगवत धाम जा सकता है। शुद्ध मन से भक्ति करके ही कोई प्रभु के विज्ञान को समझ सकता है जो प्रभु भक्त नहीं है और जो श्री कृष्ण भावना अमृत के लिए प्रयत्न शील नही है। वह इसे नही समझ सकता। हम अपना और समाज का हित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे महल बनाते हैं तो उसमें निर्धारित मापदंड अपनाते हुए निर्माण कार्य करते हैं। यह मर्यादा है जिसका अनुसरण करने मनुष्य को हवा, रोशनी की सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार मानव का जीवन मर्यादाओं में रहने में सुख का अहसास करता है। जिन्होंने मर्यादाओं को तोडा उनके जीवन में बुराइयां व रोग आते हैं। मर्यादाएं टूटती हैं तो झगडे होते हैं। जब कोई किसी भी तरह की सीमा लांघता है तो परेशानी का कारण बनता है। भगवान महावीर ने इसलिए यही संदेश दिया है कि हर चीज की मर्यादा रखों जैसे खाने की जमीन की धन की। जितनी इच्छाएं बढेंगी उतना ही दुख का कारण बनेगी। दो किनारों के बीच नदी बहती है किनारे टूट जाएं तो तबाही मचती है पानी मर्यादा में बहे तो उससे खेतों में हरियाली पैदा होती है, पेयजल की आपूर्ति की जाती है। इसलिए कि मर्यादा का पालन हुआ फिर तो सुख ही सुख मिला रावण ने मर्यादा तोडी तो आज लोग बच्चों का नाम भी रावण रखना उचित नहीं समझते। मर्यादा में रहकर चलना ही वास्तविक धर्म है, आय कम, खर्च ज्यादा ऐसा करने से परिवार में कलह होता है। महापुरुष एक अलौकिक प्रकाश पुंज सूर्य की भांति उदित होते हैं, यदि महापुरुष इस धरा पर अवतरित न होते तो संसार अज्ञान का ग्रास बन गया होता। अक्सर लोग कहते हैं कि निराकार परमात्मा साकार रूप ग्रहण नहीं करता लेकिन यह अधूरा ज्ञान सीमित दृष्टिकोण है। परमात्मा तो सृष्टि का नियामक तत्व है। इसलिए जब भी पृथ्वी पर अज्ञान व अधर्म के दानवों का साम्राज्य स्थापित होता है तो उसे इस धरा पर आना ही पडता है। प्रत्येक धर्म ग्रंथ इस बात की पुष्टि करते हैं। रात्रि के हजारों दीपक इतना प्रकाश नहीं कर पाते जितना दिन में एक सूर्य कर सकता है। इस प्रकार हजारों लाखों लोग जो खुद अशांत हैं। वह मिलकर भी समाज का उतना सुधार नहीं कर पाते जितना कि एक पूर्ण गुरु का सानिध्य ही कर देता है।

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