जय श्री नाथ जी महाराज की जय

शिव गोरख नाथ
जय श्री नाथ जी महाराज
परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु
परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर
परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री रतिनाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )

Monday, October 26, 2009

रामरस जैसी मिठास किसी और रस में नहीं

रामरस जैसी मिठास किसी और रस में नहीं
वासनाओं को मिटाने पर ही प्रभु प्राप्ति संभव है। उन्होंने कहा कि वासनाओं के रहते प्रभु की अनुभूति नहीं हो सकती क्योंकि वासनाओं और विकारों के रहते प्रभु की ओर ध्यान नहीं लगाया जा सकता। श्री रामरस में जो मिठास है वह संसार के किसी भी रस में नहीं। विचारों को शुद्ध करके रामकथा के सार को अगर कोई सुनता है तो उसका जीवन ही बदल जाता है। उन्होंने कहा कि ऋषि की कथा में राजा परीक्षित के साथ अनेक लोग थे परंतु जब कथा समाप्त हुई तो बैकुंठ धाम में विमान केवल राजा परीक्षित को ही लेने आया। जब प्रश्न किया गया कि ऐसा क्यों हुआ, बताया गया कि कथा में तो बहुत लोग थे लेकिन असली श्रोता केवल राजा परीक्षित ही थे जिन्होंने कथा के सार को समझा और हृदय में उतारा। उन्होंने कहा कि राम के जीवन चरित्र से हम जीने की तलाश सीख सकते हैं तथा अपने जीवन के असली रूप को पहचान सकते हैं।
उदाहरण
एक कुम्हार को देखने में चमकीला पत्थर मिला जो बहुत सुन्दर था लेकिन उसकी पहचान न होने के कारण उसने उसे गधे के गले में बांध दिया, जब उसी पत्थर को किसी पार्खीने देखा तो उसने उसका मूल्य चुकाकर पत्थर को सही स्थान पर रखा। उन्होंने कहा कि ठीक इसी प्रकार अगर हम अपने जीवन के मूल्य को नहीं पहचान सकते तो हाथ आई अच्छी चीज भी हाथ से निकल जाती है।
जो श्री राम की ओर कदम बढाते हैं उन्हें भगवान राम सहारा देकर पार लगा देते हैं
उदाहरण
एक बार माता कौशल्या,माता कैकयीव माता सुमित्रा कई महिलाओं के साथ उत्सव के समय सरयू नदी पर पूजन करने गई थी। पूजन के बाद दीप जलाकर शरीर की जलधारा में प्रवाहित किया गया। रात्रि का समय नजदीक आ रहा था तथा सभी महिलाएं पूजन के बाद घर लौटने की तैयारी कर रही थी तो उन्होंने अपने सामने अपने पुत्रों को आवाज दी। सभी आ गये परंतु राम लला नहीं आए। ढूंढा गया तो श्रीराम सरयू के तट पर दूर बैठे दीपकों को किनारे लगा रहे थे।
माताओं ने पूछा तो श्रीराम ने कहा कि जो दीपक मेरे निकट आ रहे हैं मैं उन्हें किनारे लगा रहा हूं। इससे आगे माता ने पूछा कि जो दीपक बीच धारा में बह रहे हैं उनको किनारे क्यों नहीं लगा रहे तो श्रीराम ने कहा कि जो मेरे निकट आता है मैं उसी को हाथ बढाकर किनारे लगा देता हूं लेकिन जो मुझसे दूर जाता है उसकी मैं चिंता नहीं करता। स्वामी जी ने कहा कि ठीक इसी प्रकार भगवान राम उसके करीब आने वालों की चिंता करते हैं, दूर जाने वालों की नहीं।

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