जय श्री नाथ जी महाराज की जय

शिव गोरख नाथ
जय श्री नाथ जी महाराज
परम पूज्य संत श्री भानीनाथ जी महाराज, चूरु
परम पूज्य संत श्री अमृतनाथ जी महाराज, फ़तेहपुर
परम पूज्य संत श्री नवानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री भोलानाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )
परम पूज्य संत श्री रतिनाथ जी महाराज, बऊधाम(लक्ष्मनगढ़-शेखावाटी )

Monday, October 26, 2009

धर्म का मर्म समझने से सुधरता है जीवन

धर्म का मर्म समझने से सुधरता है जीवन
जब धर्म का उपासना पक्ष अधिक प्रबल हो जाए और उसके आचरण का पक्ष गौण हो जाए तब धार्मिक कार्य या धर्म चर्चा में संलग्न व्यक्ति मोह माया के फेर में पड जाता है। जब तक धर्म हमारे आचरण में नहीं उतरेगा तब तक यह दोहरा पन दिखता ही है। धर्म का मर्म समझने पर ही मानव का जीवन सुधरता है।
धर्म की अनुपालनाकरने पर ही मनुष्य को वास्तविकता की पहचान होती है। असल में मनुष्य के सुख दुख का कारण उसके कर्म होते हैं। कर्मो के अनुसार ही मनुष्य को जीवन में सुख व दुख भोगने पडते हैं। सत्कर्म करने पर मनुष्य का चित शांत रहता है जिससे उसे आत्मिक संतोष मिलता है। यही उसे सुख की अनुभूति देता है। जबकि अनैतिक आचरण या दुष्कर्म करने पर मनुष्य का मन अपने आप बेचैनी अनुभव करता है। जिससे चित अस्थिर रहता है। यह बेचैनी व मन की अस्थिरता मनुष्य को शांति की अनुभूति नहीं करने देती। जिससे मनुष्य स्वयं को दुखी महसूस करता है।
जो व्यक्ति जीवन में कुछ नया करना चाहता है उसके लिए जरूरी है कि वह दुनिया के प्रवाह के खिलाफ बहना सीखे। क्रोध, मद, माया व लोभ जैसी सहज विकृतियों को स्वयं पर हावी न होने दे और उन पर काबू रखे। जीवन की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण है संयम। मनुष्य विविध रुचि वाला है वह सदा एक जैसा नहीं रहना चाहता, उसे सदैव कुछ नया चाहिए। जिस प्रकार सामग्री वहीं होती है परन्तु उसे बनने व परोसने के तरीके बदल जाते हैं। जिससे स्वाद में अंतर आ जाता है। ठीक वैसे ही सत्य एक होता है परन्तु ऋषि और विद्वान उसकी विविध रूपों में व्याख्या करते हैं। ताकि सत्य आसानी से समझ में आ जाए और लोग उस सत्य का अनुसरण करने के लिए राजी हो जाए।
परंतु सवाल यह है कि सुनने वाले कैसे हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें सुनना अच्छा लगता है परन्तु वे जहां बैठक कर सुनते हैं बातों को वहीं छोडकर चले जाते हैं। जबकि दूसरी प्रकार के वे लोग होते हैं जिनकी सुनने में भी रुचि नहीं होती वे केवल देखादेखी या सभा की शोभा बढाने चले आते हैं।
मनुष्य सत्संग में प्रवचन आए और तत्व को समझे भी नहीं तो फिर सत्संग में आने का न तो कोई फायदा है न ही कोई अर्थ। धर्म की चर्चा को सिर्फ सुनना नहीं चाहिए बल्कि सुनकर उस पर चिंतन व मनन कर उसे जीवन में उतारने का प्रयास भी करना चाहिए।

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